By विनय मिश्रा नई दिल्ली: दिनांक 11 अक्टूबर 2025, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने शनिवार को कहा कि लोगों में यह धारणा गहराई से बैठ गई है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां मदद करने की बजाय उत्पीड़न के लिए हैं। इसी भय के कारण लोग उनके पास नहीं जाते, और साइबर अपराधी इसी स्थिति का फायदा उठाकर लोगों को डिजिटल रूप से परेशान करते हैं।
उन्होंने कहा, “न्याय पाने की जगह, कई लोग डर के कारण अपराधियों को पैसे दे देते हैं। अब समय आ गया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां अधिक सहज और जनसुलभ बनें तथा लोगों में जागरूकता बढ़े। यह दोतरफा प्रक्रिया ही इस समस्या का समाधान दे सकती है।” जस्टिस संजीव खन्ना तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम (TPF) द्वारा भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित “टीपीएफ–दायित्व: नेशनल लीगल कॉन्फ्रेंस ऑन कॉम्बैटिंग व्हाइट कॉलर क्राइम” को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने व्हाइट कॉलर क्राइम (सफेदपोश अपराध) को “समाज की नैतिक संरचना को खोखला करने वाला विकसित होता खतरा” बताया और वित्तीय कानूनों को लागू करते समय अधिक संवेदनशीलता की जरूरत बताई। उन्होंने कहा, “हर वह काम या चूक, जिसका वित्तीय असर पड़ता है, उसे एक ही नजर से नहीं देखा जा सकता। कानून निर्माताओं को यह फर्क समझना होगा कि कौन-सा कार्य जानबूझकर किया गया धोखा है, कौन सी अनजाने में हुई गलती है, और कौन सी प्रक्रियात्मक चूक।” उन्होंने यह भी कहा कि “न्याय व्यवस्था की ताकत सजा की कठोरता में नहीं, बल्कि न्याय की सुनिश्चितता में निहित है।”
इस मौके पर डॉ. पूनम खेत्रपाल (सेवानिवृत्त आईएएस), जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की क्षेत्रीय निदेशक (एमेरिटस) हैं, ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में व्हाइट कॉलर क्राइम केवल धन से जुड़ा नहीं है, यह जीवन और विश्वास से जुड़ा है। उन्होंने कहा, “जब जानबूझकर निम्न गुणवत्ता की देखभाल दी जाती है, जब गरीबों को अधिकार होने के बावजूद इलाज से वंचित किया जाता है। और जब अधिक लाभ के लिए सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जाती है, तो यह लापरवाही नहीं, बल्कि व्हाइट कॉलर क्राइम है।”
डॉ. खेत्रपाल ने एक वैश्विक अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि दुनिया भर में हर साल 8.6 मिलियन (86 लाख) लोग खराब स्वास्थ्य सेवाओं के कारण समय से पहले मर जाते हैं, जिनमें से 1.6 मिलियन (16 लाख) मौतें भारत में होती हैं। उन्होंने इस चुनौती से निपटने के लिए “मजबूत फोरेंसिक ऑडिटिंग, स्वास्थ्य परिणामों की ट्रैकिंग, नियामक प्रदर्शन संकेतक और न्यायिक निगरानी” की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि “बोर्डरूम से लेकर अप्रूवल डेस्क तक, पैसे के प्रवाह के साथ-साथ जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।”
कॉन्फ्रेंस में आर्थिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ आशीष कुमार चौहान ने कहा कि जैसे-जैसे समाज समृद्ध होता है, “अपराध और अधिक ‘सफेदपोश’ होते जाते हैं।” उन्होंने एक वरिष्ठ न्यायाधीश का हवाला देते हुए बताया कि बीते दो दशकों में हिंसक और आर्थिक अपराधों का अनुपात पूरी तरह उलट गया है। पहले जहां 80 प्रतिशत अपराध शारीरिक थे, अब 80 प्रतिशत वित्तीय या साइबर अपराध हैं।
उन्होंने कहा, “आज पैसा जेब से नहीं, सिस्टम से चोरी होता है। यूपीआई ने नकद लेन-देन लगभग खत्म कर दिया है, लेकिन भ्रष्टाचार नहीं। अब चोरी डिजिटल हो गई है।”
टीपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक राजकुमार नाहटा ने कहा, “व्हाइट कॉलर क्राइम पीड़ितविहीन अपराध नहीं है। हर घोटाला हमारे अवसर छीन लेता है, हर धोखाधड़ी हमारे विकास को धीमा करती है।” उन्होंने पेशेवर वर्ग से आह्वान किया कि “अब समय है कि हम सामूहिक व्हिसलब्लोअर, नैतिकता के संरक्षक और राष्ट्र की नैतिक संपदा के रक्षक बनें।”
इस कॉन्फ्रेंस में कानून, वित्त, चिकित्सा और अकादमिक क्षेत्रों से एक हजार से अधिक पेशेवर शामिल हुए। कॉन्फ्रेंस के विभिन्न सत्रों में एथिक्स, कंप्लायंस, गवर्नेंस और वित्तीय अपराधों के बदलते कानूनी ढांचे पर चर्चा हुई, जो भारत के ‘विकसित भारत 2047’ के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
कॉन्फ्रेंस के समापन के अवसर पर एक साझा संदेश गूंजा — भारत का विकास तब तक अधूरा रहेगा, जब तक संस्थाओं में जनता का विश्वास और नैतिकता बहाल नहीं होती। जस्टिस खन्ना ने कहा, व्हाइट कॉलर क्राइम “केवल कानून की सीमाओं को नहीं, बल्कि शासन की आत्मा को भी चुनौती देता है।”

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