Published by : BST News Desk
जयपुर/राजस्थान: दिनांक 8 दिसंबर 2025, खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स-2025 में महिलाओं की 3 किलोमीटर व्यक्तिगत परस्यूट का स्वर्ण पदक जीतने वाली केआईआईटी यूनिवर्सिटी की मणिपुरी साइकिलिस्ट खोइरोम रेजिया देवी की कहानी उपेक्षाओं के बीच पनपी उस जिद की कहानी है, जिसने अंततः उन्हें उपलब्धियों की ऊंचाई तक पहुंचाया। 2019 में चयन संबंधी उपेक्षाओं के कारण सेपाक टकरॉ छोड़कर साइक्लिंग अपनाने वाली रेजिया ने शुरुआती दिनों में जितनी निराशा, अस्वीकार और मानसिक तनाव झेला, उतना शायद ही कोई खिलाड़ी सह सके। लेकिन इन्हीं संघर्षों ने उन्हें और मजबूत बनाया और आज वह भारतीय साइक्लिंग की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में शामिल हैं।
हालांकि, 2022 में ही वह एशियाई ट्रैक साइक्लिंग चैंपियनशिप में मीनाक्षी रोहिल्ला, चायानिका देवी और मोनिका के साथ टीम परस्यूट का ऐतिहासिक कांस्य पदक जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकी थीं, लेकिन उनके मन में एक अधूरा सपना था औऱ वह सपना था देश की सर्वश्रेष्ठ 3 किमी परस्यूट राइडर मीनाक्षी को किसी बड़े मंच पर हराने का।
पटियाला स्थित नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में मीनाक्षी के साथ अभ्यास करने वाली रेजिया को आखिरकार यह मौका जयपुर में मिला, और उन्होंने इसे किसी भी कीमत पर हाथ से न जाने देने का निश्चय कर लिया। उन्होंने इतने बेहतरीन अंदाज़ में रेस जीती कि उन्होंने गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी के लिए मीनाक्षी को पांच स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास बनाने से रोक दिया।
रेस खत्म होते ही रेजिया की खुशी देखते ही बनती थी। उन्होंने साई मीडिया से कहा, “मीनाक्षी चैंपियन एथलीट है। उसे हारना पसंद नहीं है और मुझे भी नहीं। मैंने अपनी जिंदगी में इतनी उपेक्षाएं झेली हैं कि अब मैं हमेशा उपलब्धियों के लिए भूखी रहती हूं। इस जीत से मैंने खुद को, और उन सभी लोगों को जवाब दिया है जिन्होंने कभी कहा था कि मैं यह नहीं कर सकती। 3 किमी परस्यूट में उससे बेहतर कोई एथलीट नहीं है, इसलिए उसे हराना मेरे लिए खास उपलब्धि है।”
हैरानी की बात यह है कि आज जिस रेजिया को पूरा साइक्लिंग जगत जानता है, कभी उसी को कहा गया था—“ये खेल तुम्हारे बस का नहीं है।” मणिपुर के बिष्णुपुर ज़िले के फुबाला गांव के एक मछुआरे की बेटी रेजिया के लिए यह ताना तलवार की तरह चुभा था। वह कहती हैं, “2019 से लेकर ट्रैक तक, घर तक, मैंने इतनी मानसिक परेशानियां झेली कि अब हर रेस मेरे लिए चुनौती बन चुकी है। और इसी वजह से मैं कभी यह नहीं सोचती कि मेरे सामने कौन है। मेरे सामने बस एक लक्ष्य होता है—खुद को देश की सर्वश्रेष्ठ साइकिलिस्ट बनाना।”
दिलचस्प बात यह है कि उनकी पहली पहचान साइक्लिस्ट की नहीं, बल्कि सेपाक टकरॉ खिलाड़ी की थी। 2014 से 2018 तक वह मणिपुर की जूनियर टीम का हिस्सा रहीं और भारत की जर्सी पहनने का सपना देखती थीं। लेकिन हर साल नेशनल कैंप की सूची आती और हर साल उनका नाम नदारद रहता।
धीरे-धीरे चयन न होने का दर्द उनके अंदर जमता गया। 2018 के अंत तक उनमें खेल का उत्साह बुझ चुका था। और एक दिन उन्होंने चुपचाप अपना पसंदीदा खेल हमेशा के लिए छोड़ दिया। महज़ 18 साल की उम्र में उनके सामने अंधेरा ही अंधेरा था।
रेजिया ने याद किया, “मेरे पिता शराब के नशे में मुझे ताने देते थे, लोग भी मज़ाक उड़ाते थे। एक समय था जब मैं हर दिन रोती थी। लेकिन तभी 2019 में एक दोस्त ने कहा—साइक्लिंग ट्राय करो- क्योंकि तुम बहुत तेज भागती हो। और शायद यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा मोड़ था।”
2020 के खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हिस्सा लिया, फिर महामारी आई। घर की हालत बिगड़ती गई, लेकिन रेजिया अपने सपने को जिंदा रखने के लिए अभ्यास करती रहीं। हालात सुधरते ही वह नेशनल ट्रायल्स के लिए दिल्ली पहुँचीं—जहाँ उन्हें फिर वही जवाब मिला: “एक्सपोज़र कम है, टाइमिंग सीनियर लेवल की नहीं।”
लेकिन इस बार रेजिया ने हार नहीं मानी। वह घर लौटीं, सुबह दौड़ना शुरू किया, दस किलो वजन घटाया औऱ फिर स्प्रिंट छोड़ एंड्यूरेंस पर फोकस किया। इस तरह उन्होंने खुद को बिल्कुल नया रूप दिया। 2021 में जयपुर सीनियर नेशनल्स में ब्रॉन्ज जीतकर उन्होंने मुख्य धारा में अपने आगमन का ऐलान किया।
इसके बाद उनका सफर तेज़ी से आगे बढ़ा। 2022 में एशियन चैंपियनशिप में भारत का पहला सीनियर महिला टीम परस्यूट पदक, फिर नेशनल गेम्स में दो स्वर्ण, और फिर एसजीओई पटियाला में वैज्ञानिक प्रशिक्षण ने उन्हें एक नई दिशा दी।
2024 तक वह भारत की सबसे बेहतरीन स्क्रैच रेसरों में गिनी जाने लगीं। उसी साल जयपुर की अस्मिता लीग में स्वर्ण जीतकर उन्होंने संकेत दे दिया था कि केआईयूजी में वह कुछ बड़ा करने वाली हैं—और उन्होंने वही किया। रेजिया कहती हैं, “मीनाक्षी को हराने के लिए दिमाग, ताकत और रणनीति—तीनों चाहिए। मैं जानती थी कि वह पिछले पां दिनों से लगातार रेस कर रही है। जैसे ही महसूस किया कि उसकी थकान बढ़ रही है, मैंने अपनी रफ्तार बढ़ा दी।”
जीत अलग बात है, लेकिन जीत के बाद प्रतिद्वंद्वी की तारीफ मिलना अलग ही सम्मान है। केआईयूजी राजस्थान में चार स्वर्ण और एक रजत जीतने वाली मीनाक्षी ने रेस के बाद रेजिया को गले लगा लिया और उनकी पीठ थपथपाई।
मुस्कुराते हुए मीनाक्षी, "रेजिया हमारी टीम की सबसे मज़बूत साइकिलिस्ट में से एक है। हम एनसीओई पटियाला में साथ में ट्रेनिंग करते हैं। मुझे खुशी है कि वह जीती। हालांकि, अपने पसंदीदा इवेंट में हारने का मेरे दिल में थोड़ा दुख था। लेकिन यह खेल है; कुछ भी हो सकता है। मैं इस दूसरे स्थान को एक सबक के तौर पर स्वीकार करती हूँ, और मैं उसे उसकी जीत पर दिल से बधाई देती हूँ।"


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