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केआईयूजी 2025: संघर्ष से शिखर तक—दोहरी गोल्ड जीतकर चमके केबल ऑपरेटर के बेटे प्रथमेश फुगे!

Published by : BST News Desk

जयपुर/राजस्थान: दिनांक 7 दिसंबर 2025, सावित्री ज्योतिबाई फुले यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे का प्रतिनिधित्व कर रहे प्रथमेश फुगे ने खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स राजस्थान 2025 में कंपाउंड आर्चरी में दो स्वर्ण पदक जीते। आर्थिक चुनौतियों को पार करते हुए 22 वर्षीय तीरंदाज ने व्यक्तिगत फाइनल में मिहिर नितीन को परफेक्ट 10 स्कोर करते हुए हराया और महक पाठन के साथ मिश्रित टीम कंपाउंड स्पर्धा में भी स्वर्ण जीता।

केआईयूजी 2025: संघर्ष से शिखर तक—दोहरी गोल्ड जीतकर चमके केबल ऑपरेटर के बेटे प्रथमेश फुगे!

प्रथमेश ने साई मीडिया से कहा,” मैं जीतने के बारे में नहीं सोचता, मैं बस अपना सर्वश्रेष्ठ देने और बाकी ऊपर छोड़ने में विश्वास करता हूँ। हर 10-पॉइंटर शॉट के लिए मैं सिर्फ अपने मसल मेमोरी पर निर्भर करता हूँ, न प्रतिद्वंद्वी की परवाह करता हूँ और न हवा की।”

पुणे के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे और पले-बढ़े प्रथमेश की स्टार बनने की कहानी मानसिक दृढ़ता से भरी है। उन्हें कम उम्र से ही पता था कि तीरंदाजी जैसा महंगा खेल खेलने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना होगा। 

उन्होंने कहा, “मैं हर दिन और कठिन अभ्यास करता था ताकि साई के नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (एनसीओई), सोनीपत में चयन हो जाए, जिससे मेरे माता-पिता पर खर्च का बोझ न पड़े। 22 साल की उम्र में यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं परिवार पर बोझ न बनूँ।”

प्रथमेश के पिता बलचंद्र फुगे एक केबल ऑपरेटर हैं और वाई-फाई व 5जी नेटवर्क के आने के बाद उन्हें भारी आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

केआईयूजी 2025: संघर्ष से शिखर तक—दोहरी गोल्ड जीतकर चमके केबल ऑपरेटर के बेटे प्रथमेश फुगे!

प्रथमेश ने याद किया, “कोविड के बाद पिता का काम लगभग बंद हो गया था और स्थिति बेहद खराब थी। आर्चरी के सामान के लिए वे रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार लेते थे। मुझे पता था कि मुझे कड़ी मेहनत करके परिवार की मदद करनी है, कर्ज चुकाने में उनका साथ देना है और अपनी आर्चरी को भी आगे बढ़ाना है।”

अपना खेल करियर प्रथमेश ने राज्य स्तरीय लंबी कूद एथलीट के रूप में शुरू किया, लेकिन घुटने की गंभीर चोट के बाद उन्हें आर्चरी अपनानी पड़ी। उन्होंने कहा, “मेरे स्कूल कोच ने कहा कि आर्चरी मेरे लिए बेहतर रहेगी क्योंकि इससे घुटनों पर ज़ोर नहीं पड़ेगा।” इसके बाद उन्होंने कंपाउंड आर्चरी टीम जॉइन कर ली, जो उनके लिए कम जोखिम वाली थी।

आर्थिक संकटों के बावजूद प्रथमेश ने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य पर टिके रहे। उन्होंने कई बड़े खिताब जीते। जैसे की ग्वांग्जू वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में टीम गोल्ड और ढाका एशियन चैंपियनशिप में टीम सिल्वर।

उन्होंने आगे कहा, “मैं दिल्ली वाले खेलो इंडिया यूथ गेम्स और लखनऊ में हुए खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में भी भाग ले चुका हूँ, लेकिन तब मैं कोई मेडल नहीं जीत पाया था। यह मेरा दूसरा केआईयूजी था और पहली बार डबल गोल्ड मिला है। हर साल केआईयूजी का स्तर ऊपर जा रहा है और मैं अगली बार भी हिस्सा लेना चाहता हूँ।” प्रथमेश के विश्वविद्यालय कोच प्रशांत रामदास शिंदे अपने शिष्य की उपलब्धि पर बेहद गर्व करते हैं। 

उन्होंने कहा, “प्रथमेश ने यहाँ तक पहुँचने के लिए अविश्वसनीय मेहनत की है। आर्थिक संघर्षों के बावजूद उनके माता-पिता ने उसे कभी खेल छोड़ने नहीं दिया। उसकी मेहनत और दृढ़ता ने ही उसे यह सफलता दिलाई है। वह साई से मिलने वाली आर्थिक सहायता का उपयोग अपनी यात्रा और उपकरणों के खर्च में करता है, जो उसके परिवार के लिए बड़ी राहत है।”

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