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नाबार्ड द्वारा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का आयोजन “हथकरघा एक जीवंत विरासत है”- डीसी हैंडलूम

By विनय मिश्रा नई दिल्लीनाबार्ड के नई दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा 12-13 अगस्त 2025 को आयोजित राष्ट्रीय हथकरघा दिवस समारोह में भारत के हथकरघा क्षेत्र की स्थायी विरासत और सांस्कृतिक महत्व वर्णन किया गया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में विभिन्न क्षेत्रों –केंद्र सरकार, वित्तीय संस्थानों, शिक्षा जगत और हथकरघा उद्योग - के प्रमुख हितधारकों ने सहभागिता की।

नाबार्ड द्वारा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का आयोजन “हथकरघा एक जीवंत विरासत है”- डीसी हैंडलूम

12 अगस्त 2025 को हुए उद्घाटन समारोह की सह-अध्यक्षता भारत सरकार की हथकरघा उपायुक्त डॉ. एम. बीना, आईएएस और नाबार्ड के अध्यक्ष शाजी के. वी. ने की। इस कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों में एनएचडीसी के प्रबंध निदेशक कमोडोर राजीव अशोक, नैबकॉन्स के प्रबंध निदेशक डॉ. हरगोपाल यंद्रा, डीएसईयू के कुलपति प्रो. अशोक कुमार नागावत और आरबीआई की उपमहाप्रबंधक अदिति गुप्ता शामिल थे। एसएलबीसी, एलडीएम, अंबपाली हथकरघा एवं हस्तशिल्प बहु-राज्य सहकारी समिति लिमिटेड की अध्यक्ष और विभिन्न बुनकर समितियों के प्रतिनिधियों की भागीदारी ने कार्यक्रम में सम्मिलित हो कर  इस क्षेत्र में सुधार के लिए उपयोगी विचारों का आदान-प्रदान किया।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के दौरान एक प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया गया जिसमें पारंपरिक हथकरघा उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित की गई। प्रदर्शकों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली आदि जैसे विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि शामिल थे। प्रदर्शित उत्पादों में महेश्वरी और कांजीवरम साड़ियाँ, बाटिक प्रिंट और ब्लॉक प्रिंट बेडशीट से लेकर रेडीमेड वस्त्र, ऊनी शॉल और जैविक खाद्य उत्पाद शामिल थे।

कार्यक्रम के दौरान अध्यक्ष शाजी के.वी. ने हथकरघा क्षेत्र में अपने जमीनी अनुभव साझा किए और नाबार्ड की परिवर्तनकारी भूमिका पर ज़ोर दिया। उन्होंने नाबार्ड द्वारा की गई विभिन्न पहलों, विशेष रूप से सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में किए गए सुधारों पर विस्तार से चर्चा की। इन सुधारों में प्रौद्योगिकी-संचालित हस्तक्षेप, सहकारी समितियों का डिजिटलीकरण और कारीगरों व बुनकरों के लिए वित्तीय पहुँच को और अधिक कुशल बनाने हेतु ऋण वितरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना शामिल है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हथकरघा केवल एक शिल्प नहीं है, बल्कि एक कहानी है—जिसे स्थायित्व, परिपत्रता और सांस्कृतिक समृद्धि जैसे विषयों के साथ बुना जा सकता है। नाबार्ड द्वारा भौगोलिक संकेतक (GI) टैगिंग के लिए पूर्व-पंजीकरण और पंजीकरण-पश्चात दोनों चरणों में दिए गए समर्थन को हैंडलूम उत्पादों में महत्वपूर्ण मूल्यवर्धन के रूप में रेखांकित किया गया। उन्होंने NABARD की ऑफ-फार्म प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (OFPO) पहल और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में काम करने की प्रतिबद्धता पर भी बल दिया, जिसमें बाजार आधारित समाधान (market-based solutions), क्षमता निर्माण और उद्देश्यपूर्ण उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है।

डॉ. एम. बीना ने विभिन्न हितधारकों—जैसे बुनकरों, शिल्पकारों, बैंकरों, सरकारी एजेंसियों, नियामकों और एनजीओ—को एक मंच पर लाने के लिए नाबार्ड के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हैंडलूम केवल विरासत नहीं है, बल्कि एक जीवंत विरासत है। उन्होंने बताया कि भारत में 35.22 लाख हैंडलूम कार्यकर्ता हैं, जिनमें 26.73 लाख बुनकर और 8.48 लाख सहायक कार्यकर्ता शामिल हैं। इनमें से 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं, और ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात 74.5 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। कुल 31.45 लाख हैंडलूम परिवारों में से 88.7 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। 

उन्होंने जागरूक उपभोग (conscious consumption), स्लो फैशन और नैतिक उत्पादन के युग में हैंडलूम की बढ़ती प्रासंगिकता पर जोर दिया, जो वैश्विक स्तर पर कम कार्बन उत्सर्जन की दिशा में हो रहे प्रयासों के अनुरूप है। उन्होंने हथकरघा दिवस पर विभिन्न हितधारकों, नाबार्ड, विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों की भागीदारी पर प्रसन्नता व्यक्त की। NABARD द्वारा जीआई (GI) क्षेत्र और गैर-कृषि उत्पादक कंपनियों में की गई पहलों के लिए उन्होंने संस्था को बधाई दी और सरकार एवं नाबार्ड के बीच सहयोग को बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा कि बुनकर से उद्यमी और निर्यातक बनने की यात्रा में विभिन्न हितधारकों का सहयोग आवश्यक है। उन्होंने indiahandloom.com जैसे प्लेटफॉर्म की महत्ता को भी रेखांकित किया, जो प्रामाणिक हैंडलूम उत्पादों को बढ़ावा देने और शिल्पकारों को व्यापक बाजार से जोड़ने का कार्य करते हैं।

नवीन कुमार रॉय, महाप्रबंधक/प्रभारी अधिकारी, नाबार्ड नई दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय ने नाबार्ड, भारत सरकार, एनएचडीसी और अन्य संस्थाओं जैसे पारिस्थितिकी तंत्र समर्थकों की भूमिका को रेखांकित किया, जो हैंडलूम और हस्तशिल्प के सतत विकास में योगदान दे रहे हैं। उन्होंने बुनकरों को आजीविका प्रदान करने और क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला (value-chain) को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

डॉ. हरगोपाल यंद्रा, प्रबंध निदेशक, नैबकॉन्स ने अपने संबोधन में हैंडलूम क्षेत्र के महत्व को रेखांकित किया और ।

कमोडोर राजीव अशोक (सेवानिवृत्त), प्रबंध निदेशक, एनएचडीसी ने अपने संबोधन में हैंडलूम क्षेत्र की संभावनाओं में विश्वास रखने की आवश्यकता पर बल दिया और भारत की समृद्ध विरासत को संरक्षित व प्रचारित करने के लिए अधिक प्रयासों का आह्वान किया। उन्होंने पारंपरिक शिल्पों के प्रति सराहना को बढ़ावा देने के लिए स्कूल छात्रों के बीच हैंडलूम और हस्तशिल्प के प्रचार और जागरूकता की आवश्यकता बताई। उन्होंने बुनकरों के कार्यस्थल की स्थिति को सुधारने पर भी बल दिया।

विभिन्न बुनकर समितियों के प्रतिनिधियों, जिनमें अंबपाली हैंडलूम और हस्तशिल्प बहु-राज्य सहकारी समिति शामिल है, ने अपने अनुभव साझा किए और सरकार तथा NABARD से अपनी अपेक्षाएं भी व्यक्त कीं।

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