मुकेश गौतम दिल्ली: सनातन धर्म में हर पर्व को मनाने के पीछे कोई ना कोई कारण होता है। एक तरह से हर पर्व या त्यौहार हमें कोई ना कोई शिक्षा देकर जाता है। कुछ पर्व किसी घटना या कथा पर बनाए जाते हैं। जैसे कि रावण वध, महिषासुर वध, गोवर्धन पर्वत का उठाना इत्यादि। अब कुछ पर्व वे होते हैं जो ईश्वर के मनुष्य रूप में जन्म लेने पर मनाए जाते हैं। जिनमें जन्माष्टमी प्रमुख है।कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे जन्माष्टमी वा गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो विष्णुजी के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्म के आनन्दोत्सव के लिये मनाया जाता है केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों में जन्माष्टमी का त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मुख्य तौर पर बृज भूमि जिसमें मथुरा भी आती है, वहाँ तो अलग ही धूम देखने को मिलती है। इस अवसर पर देशभर के सभी कृष्ण मंदिरों को अच्छे से सजा दिया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरूप लड्डूगोपाल को एक पालने में रखा जाता है। इसे उस दिन दर्शन करने आने वाले भक्तगण झूला झुलाते हैं। वही अन्य सभी मंदिरों में भी ऐसी ही व्यवस्था की जाती है ताकि भक्तों को सभी मंदिरों में श्रीकृष्ण का अहसास हो। इतना ही नहीं, सभी मंदिरों में सुबह से ही भजन, कीर्तन शुरू हो जाते हैं जो रात को बारह बजे तक चलते हैं।
रात को बारह बजने से एक दो घंटे पहले तो ऐसी धूम होती है कि पूछिए मत। वह इसलिए क्योंकि बारह बजे श्रीकृष्ण के जन्म का समय होता है। उससे पहले तो भजन, कीर्तन का शोर पूरे जोर पर होता है और मंदिर भक्तों से पूरी तरह पैक हो जाते हैं। हर किसी को मुख्य गर्भगृह में श्रीकृष्ण को देखने की इच्छा होती है।
श्रीकृष्ण का दूध, दही, चरणामृत इत्यादि से अभिषेक किया जाता है। उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। बारह बजते ही सभी श्रीकृष्ण के नाम का जयकारा लगाते हैं और अपना माथा टेकते हैं। इसके बाद सभी को माखन मिश्री प्रसाद वितरित किया जाता है जो श्रीकृष्ण को बहुत पसंद है। अगले दिन भी लोग मंदिर जाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं।
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