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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में निधन,देश में शोक की लहर

By विनय मिश्रा नई दिल्लीडॉ. मनमोहन सिंह, जिन्हें भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है, का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन की खबर ने पूरे देश को शोकाकुल कर दिया। एक विद्वान, एक दूरदर्शी अर्थशास्त्री और एक सादगीपूर्ण राजनेता के रूप में उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था और राजनीति को नए आयाम दिए। उनका जीवन संघर्ष, सेवा और समर्पण का प्रतीक रहा है। आइए, उनके जन्म से लेकर प्रधानमंत्री बनने और उनके निधन तक के सफर पर विस्तृत रूप से चर्चा करें।

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में निधन,देश में शोक की लहर

प्रारंभिक जीवन और परिवार:-

26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान) के चकवाल जिले के गाँव गह में एक साधारण सिख परिवार में जन्मे मनमोहन सिंह का बचपन संघर्षों से भरा रहा। उनके पिता गुरमुख सिंह और माता अमृत कौर थे। मनमोहन सिंह बचपन से ही अध्ययन में रुचि रखने वाले और बेहद मेधावी छात्र थे। जब वे मात्र 12 वर्ष के थे, उनकी मां का निधन हो गया। उनकी परवरिश उनके नाना-नानी ने की।

1947 के भारत विभाजन के दौरान, उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आ गया और अमृतसर में बस गया। यह घटना उनके जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ गई, और उन्होंने अपने जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन और समर्पण को अपना आदर्श बनाया।


शिक्षा: विद्वता का आरंभ:-

मनमोहन सिंह की प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर के खालसा हाई स्कूल में हुई। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। अपनी शिक्षा को और अधिक ऊंचाई देने के लिए उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एडम्स स्कॉलरशिप पर अध्ययन किया और अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नफ़ील्ड कॉलेज से पीएचडी की, जहां उनका शोध विषय "भारत के निर्यात प्रवृत्तियों और आत्मनिर्भर विकास की संभावनाएं" था। उनकी विद्वता ने उन्हें वैश्विक अर्थशास्त्रियों की अग्रिम पंक्ति में स्थान दिलाया।


प्रारंभिक करियर: शिक्षक से आर्थिक सलाहकार तक:-

पीएचडी के बाद, डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, चंडीगढ़ और अमृतसर के विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र पढ़ाया। उनकी शिक्षण शैली और विषय की गहरी समझ ने उन्हें छात्रों और सहकर्मियों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय बनाया।

1966 में, वे संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) से जुड़े। इसके बाद, वे भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने। 1971 में, वे भारतीय रिज़र्व बैंक के उप-गवर्नर बने और 1982 से 1985 तक भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्य किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं।


राजनीति में प्रवेश:-

1991 में, जब भारत गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था, तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया। उन्होंने इस भूमिका में अपनी विद्वता और दूरदर्शिता का परिचय दिया।

उनकी नीतियों के तहत भारत ने आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने विदेशी निवेशकों का भारत की ओर ध्यान आकर्षित किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। उनके प्रयासों से भारत ने आर्थिक संकट से उबरकर विकास की राह पकड़ी।


प्रधानमंत्री का सफर:-

2004 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए डॉ. मनमोहन सिंह को चुना। यह निर्णय भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण था।


पहला कार्यकाल (2004-2009)

डॉ. मनमोहन सिंह का पहला कार्यकाल कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों से भरा रहा। उन्होंने "मनरेगा" (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और सूचना का अधिकार (RTI) जैसे कानून लागू किए। उनकी सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई सुधार किए।


दूसरा कार्यकाल (2009-2014)

दूसरे कार्यकाल में डॉ. सिंह की सरकार ने कई विवादों और घोटालों का सामना किया, जिनमें 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला और कोयला घोटाला प्रमुख थे। हालांकि, उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी और सादगी पर कोई सवाल नहीं उठा। उन्होंने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत-अमेरिका समझौते के माध्यम से देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया।


निजी जीवन:-

डॉ. मनमोहन सिंह का निजी जीवन सादगी और विनम्रता का उदाहरण है। उनकी पत्नी गुरशरण कौर ने हमेशा उनका साथ दिया। उनकी तीन बेटियां हैं – उपिंदर, दमन और अमृत। वे एक पारिवारिक व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने कार्य और परिवार दोनों को संतुलित रखा।


योगदान और विरासत:-

डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति में अमूल्य है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी। उनके कार्यकाल में भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान मजबूत की।

उनकी विद्वता, ईमानदारी और नेतृत्व की क्षमता ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग स्थान दिया। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि विद्वता और सादगी के माध्यम से भी बड़े लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।


श्रद्धांजलि और अंतिम विदाई:-

डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर देशभर में शोक की लहर है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य प्रमुख नेताओं ने उनके प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की। उनकी अंतिम यात्रा में देशभर से लोग शामिल हुए, जिन्होंने उन्हें एक सच्चे नेता और विद्वान के रूप में याद किया।

उनका जीवन और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत रहेगा।

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